Jalaluddin Rumi Biography : Wiki : Poetry : Life Story : जलालुद्दीन मोहम्मद रूमी कौन है : जलालुद्दीन रूमी जीवनी

 

Who is Jalaluddin Rumi : जलालुद्दीन मोहम्मद रूमी कौन थे :

आज मैं आपको बताने वाला हूं जलालुद्दीन रूमी के बारेमे जो 13 वीं सदी के फारसी भाषा के बहोत महान कवि थे. वह ऐसे कवि थे जिन्होंने कविताओं और लेखन के जरिए दुनिया ही बदल दी पूरी दुनिया में इनकी कविताओं को बहुत पढ़ाया जाता हैै. और पढ़ा जाता है.

Jalaluddin Rumi एक ऐसे कवि हैं. जिनको पूरी दुनिया के लोग बहुत मानते हैंं. यहां तक कि अमेरिका और यूरोप में भी इनकी कविताओं को इंग्लिश में ट्रांसलेट करके बहुत ज्यादा पढ़ा जाता है.

" मौलाना जलालुद्दीन रूमी की कविताओं में प्रेम और ईश्वर भक्ति का मिश्रण हैै "


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मौलाना रूमी का जीवन परिचय :

Jalaluddin Rumi को आध्यात्मिकता का बहुत ज्ञान थाा. वह एक इस्लामिक मौलाना थे.

मौलाना एक इस्लाम में पदवी है इस्लाम के बारे में संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के बाद मिलती है 

मौलाना रूमी का पूरा नाम जलालुद्दीन मोहम्मद बलखी और जलालुद्दीन मोहम्मद रूमी है

जलालुद्दीन रूमी का जन्म सन 1207 में एक फ़ारसी बोलने वाले परिवार में हुआ था मौलाना रूमी ने ज्यादातर जिंदगी सलजुक सल्तनत ( सल्तनत ए रूम ) में गुजारी थी

मौलाना रूमी की उम्र 66 बरस थी इस्लाम धर्म के मानने वाले थे

मौलाना रूमी के पिता का नाम बहाउद्दीन था मौलाना रूमी की प्रारंभिक शिक्षा उनके पिताजी द्वारा दी गई थी 

उस समय के फारस के सम्राट ख्व़ारज़मशाह उनके बहुत बड़े प्रशंसक थे बाद में मौलाना रूमी का ख्व़ारज़मशाह के साथ कुछ विवाद हो गया था उसके बाद उनको बल्ख़ शहर छोड़ना पड़ा था


मौलाना रूमी का इंतकाल सन 1273 मे हुवा था मौलाना रूमी का नाम रूमी सल्तनत ए रूम से आया है मौलाना रूमी ने ज्यादातर कविताएं तुर्की के कोनिया में लिखि है। मौलाना रूमी सूफीवाद, प्रेम और भक्ति की बात ज्यादा करते हैं।


मौलाना रूमी के पिताजी का नाम :

मौलाना रूमी के पिताजी का नाम बहाउद्दीन वलद था उनको भी आध्यात्मिकता का ज्ञान था वह भी एक मौलाना थे मौलाना मुसलमानों में इस्लामिक शिक्षा की डिग्री है जिसे ज्यादा ज्ञान होता है उसको भी मौलाना कहा जाता है 

मौलाना रूमी के पिताजी मुगलों के आक्रमण के कारण बलखान को छोड़ तुर्की के कोन्या में बस गए थे।


मौलाना रूमी का परिवार :

मौलाना रूमी के पिता का नाम शेख बहाउद्दीन था पत्नी का नाम गौहर खातून था

बेटे - सुल्तान वलद , इलाउद्दीन चलाबी, आमिर अलीम चलाबी

बेटी - मालकेह खातून

 मौलाना रूमी की सूफी संत अत्तार से मुलाकात :


मौलाना रूमी को फिर एक महान फारसी भाषा के कवि ख्वाजा फरीदउद्दीन अत्तार से मुलाकात हुई यह मुलाकात  ईरान के निशापुर शहर में हुई थी मौलाना अत्तार ने रूमी को देखते पहचान लिया और बोले " यह लड़का 1 दिन बहुत महान इंसान बनेगा "  उस समय मौलाना रूमी की उम्र महज 3 साल थी


मौलाना ख्वाजा फरीदउद्दीन अत्तार ने मौलाना रूमी को अपनी एक किताब दी थी जिसका नाम "असर नामा" था  इस असर नामा बुक में अपनी रूह के बारे में लिखा गया है हम अपनी रूह को खुदा से कैसे मिलाएं मौलाना अत्तार के प्रभाव से उन्होंने भविष्य में बहुत सारी कविताएं लिखी

 मौलाना रूमी की पिता की रुखसती :

मौलाना रूमी के पिताजी बहाउद्दीन अल्लाह को प्यारे हो गए सन 1222 में उनके पिताजी बहाउद्दीन का इंतकाल हो गया था जब मौलाना रूमी 25 साल के थे । उसके बाद मौलाना रूमी अपने मदरसे के मुख्य मौलाना बन गए। 9 साल तक उन्होंने मदरसे में अपने एल्बम में इजाफा किया। उन्होंने इसके बाद कोनिया में अपना आशियाना बसा लिया।

मौलाना रूमी की शम्स तबरीजी से मुलाकात :

मौलाना रूमी की 15 नवंबर 1244 में एक महान सूफी संत शम्स तबरेज जी से मुलाकात हुई जो इसके बाद वह उनके गुरु बन गए अपने गुरु मौलाना शम्स तबरेज से उन्होंने बहुत सारी शिक्षा ली फिर वह भी एक सूफी संत बन गए

मौलाना रूमी अपने आध्यात्मिक की दुनिया में खो गए। इसके बाद फिर जो उन्होंने जो लिखा आज पूरी दुनिया पढ़ती है। मौलाना रूमी ने लिखने में एक इतिहास ही सर्ज दिया।

मौलाना रूमी का इंतकाल 17 दिसंबर 1273 को हुआ था उनकी मैयत में सारे सारे धर्म के लोगों ने हिस्सा लिया था इसलिए क्युकी वो प्रेम की बात करते थे

मौलाना रूमी के जाने से पूरी दुनिया में मातम सा छा गया था उनके जाने से आध्यात्मिकता का एक युग का अंत हुआ। आज भी तुर्की के कोनिया में उनका म्यूजियम बनाया गया है। उनकी वजह से कोनिया सूफीवाद के लिए पूरी दुनिया में प्रचलित हो गया

मौलाना रूमी की प्रतिमा बुका में स्थापित की गई और उनकी मजार कोनिया में स्थित है 



 जलालुद्दीन रूमी के कार्य :

मौलाना रूमी ने बहुत सारे प्रकार की कविता लिखि है. जिसमे रूबयत, गज़ल, दिवान ओर 6 किताबें मसनवी की सबसे अच्छा काम मौलाना रूमी का " मतनाइये मनवी " इसमें 27000 लाइन लिखी हैै. जो सब दोहे है दीवान ए कबीर, दीवान ए शम्स तबरीज़ जैसी किताबें भी लिखी है.

Jalaluddin Rumi ने 35000 फ़ारसी दोहे, 2000 छंद, 90 गज़ल,फिही माँ फिही मजलिस ए सबा जैसी किताबें भी लिखी है.

Jalaluddin Rumi Poetry : जलालुद्दीन रूमी की कविता :

When i die

जब मे मरू ओर मेरा जनाज़ा निकाला जाये,

आपको कभी नहीं सोचना चाइये,

मुहे इस दुनिया की याद आरही है,

कोई भी आंसू मत भहावो,

विलाप ना करें ना ही खेद प्रकट करें,

मे नहीं गिर रहा हु एक राक्षस के रसातल मे,


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